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NOTA
भारत में इसे 2013 सर्वोच्च न्यायलय की स्वीकृति के बाद से लागू किया गया था ।जिसके अंतर्गत व्यक्ति नागरिक अपना मत चुनाव लड़ने वाले समस्त प्रत्याशियों के विरोध में देते हैं।
हालांकि भारत में NOTA अस्वीकृति का अधिकार प्रदान नही करता है। जिस सदस्य के सर्वाधिक मत होते हैं , उसे विजयी घोषित कर दिया जाता है।
लेकिन वर्तमान समय में NOTA के पक्ष में अधिक मत पड़ने पर दोहरा चुनाव कराने की व्यवस्था नही है।
इस व्यवस्था को लागू करने के लिए चुनाव प्रणाली के नियम 64 में संशोधन करना होगा। नियम 64 :- निर्वाचन के परिणाम की घोषणा और निर्वाचन सम्बन्धी विवरण को संदर्भित करता है ।
पुनःनिर्वाचन के अंतर्गत NOTA अभिव्यक्ति की स्वतंरता के अधिकार को मूर्त रूप देता है ।क्योंकि चयनितप्रत्याशियों के सम्बंध में अपनी सहमति और असहमति प्रकट करने का अधिकार प्रदान करता है।वहीं मतदाता इस प्रक्रिया से दूर नही रहते हैं वे इसमें भाग लेते हैं जिससे लोकतंत्र के संचालन में सहायक सिद्ध होता है। साथ ही राजनीतिक दलों के प्रत्याशियों के चयन अपारदर्शिता विद्यमान,परिवारवाद, पक्षपात की राजनीति को दूर कर सत्यनिष्ठ प्रत्याशियों के चयन में भूमिका निभाकर लोकतंत्र को सुध्दरिकरण करता है।
लेकिन वहीं पुनःचुनाव कराने में सरकार का खर्च अधिक होने के कारण वित्तिय दबाब बढ़ता है। साथ ही चुनावों की बारंबारता जनजीवन में व्यवधान उतपन्न करती है जो लोकतंत्र के विपरीत है ,इसके अलावा प्रसाशनिक दबाब बढ़ता है और निर्वाचन आयोग द्वारा अचार सहिंतालागू करने के कारण चुनावों का पुनःआयोजन विकासात्मक कार्यों और गवर्नेन्स को प्रभावित करता है।
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